सूचना के अनुसार कृतियाँ करो:
(१) कृति पूर्ण करो :
मातृभूमि की विशेषताएँ
१. इसने श्री राम कृष्ण जैसे सपूतों को जन्म |
दिया है।
२. समुद्र नित्य इसकी पद-रज को धोता है।
३. समुद्र इसे प्रणाम करता है।
४. मातृभूमि का पुण्य नाम है।
(२) कृति पूर्ण करो :
कवि मातृभूमि के प्रति अर्पित करना चाहता है-
मन
देह
(३) एक शब्द में उत्तर लिखो :
१. कवि की जिह्वा पर इसके गीत हों.
उत्तर: मातृभूमि
२. मातृभूमि के चरण धोने वाला
उत्तरः समुद्र
३. मातृभूमि के सपूत
उत्तर: श्रीराम ,कृष्ण
४. प्रतिदिन सुनने / सुनाने योग्य नाम
उत्तर: मातृभूमि
५. मातृभूमि के चरणों में इसे नवाना है
उत्तरः शीश
(४) कविता की पंक्तियाँ पूर्ण करो
सेवा में तेरी..
.. बलिदान मैं जाऊँ ।।
उत्तर:
सेवा में तेरी माता! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ-सुनाऊँ ।। तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ । मन और देह तुम पर
बलिदान मैं जाऊँ.
भाषा बिंदु
निम्न विरामचिह्नों के नाम लिखकर उनका वाक्य में प्रयोग करो :
(१) । - पूर्ण विराम
वाक्य : राजा ने राजकुमारी को गले लगा लिया।
(२); - अर्ध विराम
वाक्य : शालू बच्ची थी; पर मुझे उससे चिढ़ हो गई थी।
(३) ? - प्रश्नसूचक चिह्न
वाक्य : मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है?
(४) योजक
--
वाक्य : दिन भर बड़ी दौड़-धूप रही।
(५) - विस्मयसूचक चिह्न
वाक्य : हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शीश नवाऊँ ।
(६) ' ' - इकहरा उद्धरण चिह्न
वाक्य : रामकुमार जी ने 'कबीर का रहस्यवाद' लिखा।
(७). “ • दोहरा उद्धरण चिह्न
--
वाक्य : राजा ने पूछा "तुमने क्या किया दानों का?"
(८) – निर्देशक चिह्न
वाक्य : सच ही कहा गया है - बुरे काम का बुरा नतीजा ।
उपयोजित लेखन
शब्दों के आधार पर कहानी लिखो :
ग्रंथालय, स्वप्न, पहेली, काँच
उत्तर : नेहा एक छोटे से गाँव में रहती थी। उसे पढ़ने का बहुत शौक था। पर गाँव में आठवीं कक्षा के बाद
कोई स्कूल ही नहीं था। उसके माता-पिता ने नेहा का शौक देखते हुए उसे आगे पढ़ने के लिए पास के कस्बे
में भेजा। नया स्कूल नेहा को बहुत अच्छा लगा, विशेष रूप से वहाँ का ग्रंथालय । वहाँ हर विषय की ढेरों
पुस्तकें थीं। काँच की बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजी पुस्तकें मानो नेहा को अपनी ओर बुलातीं। जब भी
अवसर मिलता, वह पुस्तकालय के अध्यक्ष की अनुमति लेकर पुस्तक पढ़ने बैठ जाती । पुस्तकें पढ़ने की
लगन के कारण उसने काफी ज्ञान अर्जित कर लिया था। वह अपनी कक्षा में भी प्रथम स्थान पर रहती थी।
धीरे-धीरे नेहा स्कूली पढ़ाई पूरी करके महाविद्यालय में पहुँची। अब नेहा का एक ही स्वप्न था, अपने गाँव के
स्कूल में आगे की कक्षाएँ बढ़वाना । वह हमेशा इसी दिशा में सोचती रहती । जागती आँखों द्वारा | देखा गया
उसका यह स्वप्न मानो एक पहेली था । कैसे वह अपना यह स्वप्न पूरा कर पाएगी। पर कहते हैं न जहाँ - चाह
होती है. वहाँ राह भी निकल आती है। नेहा अपने गाँव के सरपंच से मिली और उसने उन्हें इस दिशा में
सोचने को विवश किया। दूसरी ओर उसने अपने महाविद्यालय की प्राचार्या से भी इस विषय में चर्चा की।
नेहा के प्रयास रंग लाए। प्राचार्या जी के प्रभाव से शिक्षाधिकारी नेहा के गाँव में आए और अनेक लोगों से
मिले। शीघ्र ही गाँव के स्कूल को दसवीं तक की कक्षाओं की अनुमति मिल गई।